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गुरुवार, जून 30, 2011

मेघ बजे : बाबा नागार्जुन का एक लोकप्रिय बालगीत



मेघ बजे



धिन-धिन-धा धमक-धमक, मेघ बजे।
दामिनि यह गई दमक, मेघ बजे।


दादुर का कंठ खुला, मेघ बजे।
धरती का हृदय धुला, मेघ बजे।
धिन-धिन-धा धमक-धमक, मेघ बजे।


पंक बना हरिचंदन, मेघ बजे।
हल का है अभिनंदन, मेघ बजे।
धिन-धिन-धा धमक-धमक, मेघ बजे।


नागार्जुन

(यह गीत उत्तराखंड में कक्षा - सात की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक में शामिल है।)

(सभी चित्र : गूगल खोज से साभार)

बुधवार, जून 29, 2011

बहुत मज़े में : वंशिका की रंजना के साथ रवि का शिशुगीत

♥♥ बहुत मज़े में ♥♥


आसमान में नन्हे बादल
बहुत मज़े में घूम रहे हैं!

पर्वत इन्हें बुलाएगा जब,
एक साथ वे उधर मुड़ेंगे!
पर्वत से टकरा-टकराकर,
एक साथ फिर इधर मुड़ेंगे!

मस्त हवा के संग-संग वे
बहुत मज़े में झूम रहे हैं!



रंजना : वंशिका माथुर  गीत : रावेंद्रकुमार रवि

रविवार, जून 26, 2011

उसको क्यों खा जाते हो? : निरंकारदेव सेवक की शिशुकविता

उसको क्यों खा जाते हो?

लाल टमाटर! लाल टमाटर!
मैं तो तुमको खाऊँगा।

रुक जाओ, मैं थोड़े दिन में
और बड़ा हो जाऊँगा।

लाल टमाटर! लाल टमाटर!
मुझको भूख लगी भारी।

भूख लगी है तो तुम खा लो
ये गाजर-मूली सारी।

लाल टमाटर! लाल टमाटर!
मुझको तो तुम भाते हो।

जो तुमको भाता है, भैया!
उसको क्यों खा जाते हो?

निरंकारदेव सेवक

शुक्रवार, जून 24, 2011

चिड़िया रानी नहा रही है : रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत


चिड़िया रानी नहा रही है


फव्वारे के नीचे बैठी,
चिड़िया रानी नहा रही है!

पानी के बुलबुले देखकर,
वह अपने पर फुला रही है!
पंख फुलाए, छप-छप करती,
गीत सुरीला सुना रही है!
चिड़िया रानी नहा रही है!

मीठा फल खाएगी चुनकर,
चोंच खोलकर बता रही है!
ख़ूब नहाकर भूख लगी अब,
खाने का मन बना रही है!
चिड़िया रानी नहा रही है!

रावेंद्रकुमार रवि

बुधवार, जून 22, 2011

नहीं गलेगी तेरी दाल : सुधीर सक्सेना सुधि की बालकविता


 नहीं गलेगी तेरी दाल


बिल्ली बोली चूहे से -
चुहिया है बीमार।
लेकर चुहिया बाहर आ जा,
लिए खड़ी मैं कार।

चूहा बोला - हुई बावली,
मैं सब जानूँ तेरी चाल।
जिधर से आई, उधर चली जा,
नहीं गलेगी तेरी दाल।


♥ सुधीर सक्सेना सुधि 
(फ़ोटो : गूगल सर्च से साभार)

सोमवार, जून 20, 2011

चकमक में सजी राज कुमारी की दो कविताएँ

बाल विज्ञान पत्रिका चकमक का
जून 2011 का अंक भी हमेशा की तरह
विशेष सज-धज के साथ ही आया है!
उसके मुखपृष्ठ पर छपी रचना ने ही मन मोह लिया!
- आप भी पढ़िए -
कविता को स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए
चूज़े (मुर्गी के बच्चे) पर चट्का लगाइए!

शनिवार, जून 18, 2011

कोई युक्ति सुझाओ : डॉ. नागेश पांडेय संजय की शिशुकविता


कोई युक्ति सुझाओ

मेरे नाम अनेक, दोस्तो,
मैं छोटा-सा भोलू।
कोई मुझसे सोनू कहता,
कोई  कहता गोलू।

दादा जी कहते हैं टिंकू,
दादी कहतीं कालू।
मम्मी मुझसे लल्ला कहतीं,
पापा कहते लालू।

मेरे घर जब आता कोई,
कहता - नाम बताओ।
चुप रह जाता हूँ मैं, तुम ही
कोई युक्ति सुझाओ। 


डॉ. नागेश पांडेय संजय 
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(चित्र में हैं : आदित्य रंजन)
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गुरुवार, जून 16, 2011

वेबकैम की शान निराली : सरस चर्चा (३६)

आज सबसे पहले पता करते हैं कि 
चुलबुल ने उगते हुए सूरज के साथ और क्या-क्या देखा! 


अब पता करते हैं कि लविज़ा ने 
आइसक्रीम खाते हुए किसका और कौन-सा गीत गुनगुनाया!

Laviza

अब चलते हैं नेशनल ज्योग्रेफिक डॉट कॉम की सैर करने! 
यहाँ आपको मिलेंगे ऐसे प्यारे-प्यारे बहुत से फ़ोटो! 

Photo: Family of whooper swans in tall grass

इसके बाद पढ़ते हैं वेबकैम पर रची गई एक अनोखी रचना! 
इसके रचनाकार हैं : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक! 

वेबकैम की शान निराली, करता घर-भर की रखवाली! 


कैलाश सी शर्मा की यह कविता भी कुछ कम नहीं है! 

दो खरगोश भागकर आए, बोले कुत्तों से हमें बचाओ!


बाल-मंदिर में बचपन की मधुर याद करा रही है, 
डॉ. सुरेंद्र विक्रम की यह ग़ज़ल!

क्या मज़े थे, नर्सरी के दिन! उन दिनों की याद आई, क्या करें? 


रिमझिम छुट्टियाँ मनाने के लिए चली गई है! 
मीठी-मीठी यादें लेकर आएगी!


पाखी भी सुंदर यादों का खजाना बटोरने के लिए घूमने गई है! 


मिट्टी में खेलने का मज़ा ही कुछ और है!
आदित्य को मिट्टी खेलने के लिए किसने लाकर दी? 


कुहू भी कुछ मज़ेदार समाचार सुना रही है!


नन्ही परी की मस्ती देखे बिना तो मज़ा अधूरा ही रह जाएगा!


अंत में सरस पायस पर पढ़िए मेरी यह कविता!

ऐसी ख़ुशी मिली मुझको 


भौंरे और मधुमुखी ने 
उसको मधु सुर में गीत सुनाए! 
जिनसे सरस हुआ ख़ुश हो 
वह भी नाचा पंखुरी उठाए!


रावेंद्रकुमार रवि

मंगलवार, जून 14, 2011

ऐसी खुशी मिली मुझको : रावेंद्रकुमार रवि की नई बालकविता

२०२वीं पोस्ट

ऐसी ख़ुशी मिली मुझको


नाना के आने पर जैसे
ख़ुश हो जाए नाती!
या फिर किसी दूर के साथी
की आ जाए पाती!

ऐसी ख़ुशी मिली मुझको
जब खिला फूल उस डाली पर,
जिसका पेड़ लगाया था
मैंने पिछली दीवाली पर!

आईं सूरज की किरणें भी
उसे चूमकर चमकाने!
और हवा के झोंके आए
उसे प्यार से लहराने!

तितली भी आई बतियाने
बहुत प्यार से सज-धजकर!
खुश हो-होकर पर फैलाए
नाची-ठुमकी रुक-रुककर!

भौंरे और मधुमुखी ने
उसको मधु सुर में गीत सुनाए!
जिनसे सरस हुआ, खुश हो
वह भी नाचा पंखुरी उठाए!


रावेंद्रकुमार रवि

रविवार, जून 12, 2011

देखो, मैं कितना गोरा हूँ : पहेली का हल

८ जून २०११ को सरस पायस पर यह चित्र प्रकाशित करके 
यह पूछा गया था कि यह किसका फ़ोटो है! 
इसके साथ पहेली के रूप में 
मेरी एक कविता भी प्रकाशित की गई थी
जिसमें इसके नाम से संबंधित संकेत दिए गए थे!
-------------------------------  
बहुत बढ़िया! अच्छी पहेली है!
उत्तर तो मुझे पता हैमगर बताऊँगा नहीं! 

Raja Lambert ने इसे खरगोश बताया! 

Akshita (Pakhi) ने कहा
पहले मयंक दादा जी बताएँगे
फिर हम बच्चों की बारी... 

मयंक दादा जी ने बताया
अरे भाई! यह तो बिल्ली है! 
-------------------------------  

इसका उत्तर बताने से पहले मैं 
यह बताना चाहता हूँ कि कविता से इसके उत्तर का अनुमान 
कैसे लगाया जा सकता है! 

पहले संकेत में मिले शब्दों को कोष्ठक में लिख लेते हैं!

मुझमें अंग-अंग है आता,  (अंग)
रगों-रगों से मैं बन जाता!  (रगों)

लगता तो बिल्कुल बोरा हूँ,
देखोमैं कितना गोरा हूँ!  (गोरा)

खर्र-खर्र भी है मुझमें,  (खर्र)
गोश्त बहुत-सा है मुझमें! (गोश्त)

अंगूरों की याद दिलाता,  (अंगूरों)
राख मिला पहचाना जाता!  (राख

अब इन सभी शब्दों को एक साथ रखकर प्रयास करते हैं!

( अंगरगोंगोराखर्रगोश्तअंगूरोंराख )

पहले कुछ अनोखे शब्द हमारे सामने प्रकट होते हैं! जैसे -- 

अंग व रगों से अंगरगों
अंग व गोरा से अंगगोरा
खर्र व गोश्त से खरगोश (सबसे आसान)
अंगूरों व अंगगोरा से बनता है अंगोरा
अंगोरा के अंतिम व खरगोश के पहले अक्षर को मिलाने से राख बनता है! 

इस प्रकार पहेली का सही उत्तर निकलकर आ जाता है! 

 अंगोरा खरगोश 





प्रयास करने के और भी तरीक़े हो सकते हैं!
 रावेंद्रकुमार रवि 
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