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मंगलवार, जून 29, 2010

बरखा रानी, आओ ना : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत

बरखा रानी, आओ ना!
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झूम-झामकर, धूमधाम से
हमको गले लगाओ ना!
बरखा रानी, आओ ना!


परेशान होकर गरमी से
भूल गईं जो मीठी बतियाँ,
उन चिड़ियाओं की बोली में
कुछ मिठास भरवाओ ना!
बरखा रानी, आओ ना!


बादल की गड़-गड़ के पीछें
छुपा रखी थी जो स्वरलहरी,
पत्तों पर गिर-गिरकर हमको
फिर से वही सुनाओ ना!
बरखा रानी, आओ ना!


बुनती रहीं आज तक जो तुम
इंद्रधनुष के रंगोंवाला,
बूँदों का तुम वही बिछौना
धरती पर बिछवाओ ना!
बरखा रानी, आओ ना!
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रावेंद्रकुमार रवि

सोमवार, जून 28, 2010

फिर से हो गया गुड्डा : पूर्णिमा वर्मन की एक शिशुकविता


फिर से हो गया गुड्डा


बित्ते-भर का गुड्डा,
गुड्डा हो गया बुड्ढा।

शीशे में अटका था,
धागे से लटका था।
सारा उसका जीवन,
गाड़ी में भटका था।

हिलते-हिलते बाबा,
इक दिन टूटा धागा।
धम से कूदा गुड्डा,
धागा ले के भागा।

आन्या ने तब पकड़ा,
समझा उसका दुखड़ा।
माँ ने धागा बदला,
और सँवारा मुखड़ा।

बित्ते-भर का बुड्ढा,
फिर से हो गया गुड्डा।

(यह गुड्डा आन्या की माँ की कार में शीशे से लटका रहता है।
एक दिन लटके-लटके गुड्डे का धागा टूट गया।
आन्या की माँ ने गुड्डे को डिक्की में फेंककर नई बत्तख लटका दी।
लेकिन आन्या को वह पसंद नहीं आई।
उसे तो वही गुड्डा चाहिए था।
आखिरकार माँ को गुड्डे की मरम्मत करनी पड़ी।
टूटा धागा जोड़ना पड़ा और उसमें गुड्डे को सिलकर फिर से उसे
कार में लटका दिया गया।
यह देखकर आन्या ख़ुश हो गई।
ऊपरवाले चित्र में आन्या इसी गुड्डे से खेल रही है।)


कविता : पूर्णिमा वर्मन (आन्या की नानी)
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छायाकार : प्रवीण सक्सेना (आन्या के नाना)


रविवार, जून 27, 2010

चलो, प्यार से हम मुस्कराएँ : सरस चर्चा ( 2 )



ओह, आज पता चला कि
नन्हे आदित्य की तबियत ठीक नहीं चल रही!
हम सब मिलकर प्रार्थना करते हैं कि
वह बहुत जल्दी ठीक हो जाए!
हम सबके साथ खिलखिलाकर हँसे और प्यार से मुस्कराए!




कान्हा की बातें एकदम नए अंदाज़ में!






अरे! यह तो पाखी का नया हवाई जहाज लग रहा है!






आदित्य : मेरे मुँह का नाप ले लीजिए, ताकि ... ... .!




लविज़ा आपको दिखा रही है -
मेट्रो ट्रेन के कुछ मस्ती-भरे नज़ारे!

LavizaLaviza





यह कैसी पूछताछ है?






इस बार देसी घी की इमरतियों की दावत है!




इन्हें पहचाना आपने?






नभ में कैसे दमक रहा है! चंदा मामा चमक रहा है!




अंत में देखते हैं : चुलबुल के द्वारा बनाया गया यह चित्र!


चुलबुली




अगले रविवार को फिर मिलेंगे! तब तक के लिए शुभविदा!

शुक्रवार, जून 25, 2010

चुलबुल द्वारा बनाए गए अनूठे चित्रों की झाँकी




आज "सरस पायस" आपको
एक और नन्ही प्रतिभा से मिलवा रहा है!
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जिसका नाम है : चुलबुल!

चुलबुल कितनी चुलबुली है!
यह तो उसका मुखड़ा देखते ही पता चल जाता है!
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वह कितनी प्रतिभाशाली है!
यह आप उसके द्वारा बनाए गए चित्रों को देखकर जान जाएँगे!
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चुलबुल द्वारा बनाए गए चित्र ख़ुद ही बोलते हैं!
इन चित्रों के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती!

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पर मन मान ही नहीं रहा!
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- इसलिए कुछ कह देता हूँ -
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चार साल की चुलबुल ने ये चित्र बनाए हैं!
सुंदर-सुंदर चित्र हमारे मन को भाए हैं!
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मेरी शुभकामना है कि "चुलबुल" ज्यों-ज्यों बड़ी हो,
त्यों-त्यों बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ प्राप्त करती रहे!
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रावेंद्रकुमार रवि



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